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Tuesday, March 1, 2011

प्लास्टिक कचरे से स्वास्थ्य तथा पर्यावरण को खतरा

प्लास्टिक कचरे से पर्यावरण को खतरा है प्लास्टिक थैलों के इस्तेमाल से होने वाली समस्यायें मुख्य रूप से कचरा प्रबंधन प्रणालियों की खामियों के कारण पैदा हुई हैं। प्लास्टिक रसायनों से निर्मित पदार्थ है जिसका इस्तेमाल विश्वभर में पैकेजिंग के लिये होता है, और इसी कारण स्वास्थ्य तथा पर्यावरण के लिये खतरा बना हुआ है। यदि उचित प्लास्टिक का रिसाइकिंलग किया जाए तो पर्यावरण अथवा स्वास्थ्य के लिये ये खतरा नहीं होगा|
प्लास्टिक थैले तीन प्रकार के बुनियादी पॉली एथिलीन पॉलीमरों-उच्च घनत्व वाले पॉलीएथिलीन (एचडीपीई),अल्पघनत्व वाले पॉलीएथिलीन (एलडीपीई) अथवा लीनियर अल्प घनत्व वाले पॉलीएथिलीन (एलएलडीपीई) में से किसी एक से बना होता है। किराने वाले थैले आम तौर पर एचडीपीई के बने होते हैं जबकि ड्राई क्लीनर के थैले एलडीपीई से निर्मित होते हैं। इन पदार्थों के बीच मुख्य अंतर पॉलीमर ‚ मोटाई पर निर्भर होती है। प्लास्टिक मूल रूप से विषैला या हानिप्रद नहीं होता। परन्तु प्लास्टिक के थैले रंग और रंजक, धातुओं और अन्य तमाम प्रकार के अकार्बनिक रसायनों को मिलाकर बनाए जाते हैं। रंग और रंजक एक प्रकार के औद्योगिक उत्पाद होते हैं जिनका इस्तेमाल प्लास्टिक थैलों को चमकीला रंग देने के लिये किया जाता है। इनमें से कुछ कैंसर को जन्म देने की संभावना से युक्त हैं तो कुछ खाद्य पदार्थों को विषैला बनाने में सक्षम होते हैं। रंजक पदार्थों में कैडमियम जैसी जो भरी धातुएं होती हैं वे फैलकर स्वास्थ्य के लिये खतरा साबित हो सकती हैं कैडमियम और जस्ता जैसी विषैली धातुओं का इस्तेमाल जब प्लास्टिक थैलों के निर्माण में किया जाता है, वे निथार कर खाद्य पदार्थों को विषाक्त बना देती हैं। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कैडमियम के इस्तेमाल से उल्टियां हो सकती हैं
प्लास्टिक थैलों से उत्पन्न समस्याएं
प्लास्टिक थैलियों का निपटान यदि सही ढंग से नहीं किया जाता है तो वे जल निकास (नाली) प्रणाली में अपना स्थान बना लेती हैं, जिसके फलस्वरूप नालियों में अवरोध पैदा होकर पर्यावरण को अस्वास्थ्यकर बना देती हैं। इससे जलवाही बीमारियों भी पैदा होती हैं। रि-साइकिल किये गए अथवा रंगीन प्लास्टिक थैलों में कतिपय ऐसे रसायन होते हैं जो निथर कर जमीन में पहुंच जाते हैं और इससे मिट्टी और भूगर्भीय जल विषाक्त बन सकता है। जिन उद्योगों में पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर तकनीक वाली रि-साइकिलिंग इकाइयां नहीं लगी होतीं, वे प्रक्रम के दौरान पैदा होने वाले विषैले धुएं से पर्यावरण के लिये समस्याएं पैदा कर सकते हैं। प्लास्टिक की कुछ थैलियों जिनमें बचा हुआ खना पड़ा होता है, अथवा जो अन्य प्रकार के कचरे में जाकर गड-मड हो जाती हैं, उन्हें प्राय: पशु अपना आहार बना लेते हैं, जिसके नतीजे नुकसान दायक हो सकते हैं। चूंकि प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जो सहज रूप से मिट्टी में घुल-मिल नहीं सकता और स्वभाव से अप्रभावनीय होता है, उसे यदि मिट्टी में छोड़ दिया जाए तो भूगर्भीय जल की रिचार्जिंग को रोक सकता है। इसके अलावा, प्लास्टिक उत्पादों के गुणों के सुधार के लिये और उनको मिट्टी से घुलनशील बनाने के इरादे से जो रासायनिक पदार्थ और रंग आदि उनमें आमतौर पर मिलाए जाते हैं, वे प्राय: स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं।
रोकने के उपाय में पर्यावरण और वन मंत्रालय ने रि-साइकिंल्ड प्लास्टिक मैन्यूफैक्चर ऐंड यूसेज रूल्स, 1999 जारी किया था, जिसे 2003 में, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1968 के तहत संशोधित किया गया है ताकि प्लास्टिक की थैलियों और डिब्बों का नियमन और प्रबंधन उचित ढंग से किया जा सके। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने धरती में घुलनशील प्लास्टिक के 10 मानकों के बारे में अधिसूचना जारी की है।
प्लास्टिक थैलियों के विकल्प के रूप में जूट और कपड़े से बनी थैलियों और कागज की थैलियों को लोकप्रिय बनाया जाना चाहिए और इसके लिए कुछ वित्तीय प्रोत्साहन भी दिया जाना चाहिए। यहां, ध्यान देने की बात है कि कागज की थैलियों के निर्माण में पेड़ों की कटाई निहित होती है और उनका उपयोग भी सीमित है। आदर्श रूप से, केवल धरती में घुलनशील प्लास्टिक थैलियों का उपयोग ही किया जाना चाहिये।